ऐ इब्ने सखी तेरी सखाबत है! निराली अजमेर के वाली
सुल्तान व गदा सब है! तेरे दर के सवाली अजमेर के वाली
गुलजारे तसव्वुफ मै है! महकार तुझी से अनबार तुझी से
ऐ गुलसने ज़ेहरा की कली ऐ शै आली अजमेर के वाली
आँखों से मेरे पर्दा हटा दीजिये लिल्लाह ऐ मेरे साहनशाह
हर बख्त तकवे मै भी तरा रोये जमाली अजमेर के वाली
हर रंज व अलम से वही आजाद हुआ है! आवाद हुआ है!
जिसने भी मोहब्बत तेरी सीने मै बसाली अजमेर के वाली
जयपाल तेरे कदमो मै आकर फिर गिरा है! और कलमा पढ़ा है
तड़पाती है मुझको तेरे दरबार की दूरी हो जाये हुज़ूरी
मै भी तो कभी चूमू तेरे रोजे की जाली अजमेर के वाली
अल्ताफ व इनायत तेरे दर से है! मोसूम कोई नहीं महरूम
कियो करना सखाबत हो तेरी जग मै मिसाली अजमेर के वाली
जिस जाम से सरसार थे! वो हज़रत काकी खुसरो व निजामी
भर दीजिये इस जाम से अब सैफ की प्याली अजमेर के वाली
Writter :- हसीन मुसीर अहमद कादरी नक्सबंदी भुजपुरा अलीगढ