तुमने शाहे जिलान मुझे बगदाद बुलाया!
यूँ मेरे मुकद्दर को शाह तुमने जगाया!
देखु ना तेरा दरबार मेरी थी ये तमन्ना!
मुद्दत का मेरे दिल का ये अरमान बराया!
हो शुक्र अदा कैसे तुम्हारा शाहे जिलान!
मुझ पापी को दरबार का दीदार कराया!
हा हा तुम्हे ना मालूम है किया चाहिए मुझको!
या गोस करम कर मै ना बढ़ी दूर से आया!
हर आरजू बार आये उवैसे रिज़वी की!
ये अर्ज लिए आका मै कराची से ना आया!
Writter :- Haseen Ahmad Kadri Naksvandi Bhujpura Aligarh